पापों का सम्मान हुआ है
पापों का सम्मान हुआ है
पुण्यों का अपमान हुआ है
अमृत सब साँपों ने पीया
उपलब्ध हमें विषपान हुआ है
सत्य नहीं उच्चार सके हम
झूठ बड़ा आसान हुआ है
चरित्र नहीं है पास किसी के
दरिद्र बड़ा इंसान हुआ है
ऊँचे महल बड़े दानी हैं
फुटपाथों का दान हुआ है
आज नहीं मुस्काने दिखतीं
ये जीवन श्मशान हुआ है
-महेश मूलचंदानी
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