Thursday, December 21, 2006

पापों का सम्मान हुआ है

पापों का सम्मान हुआ है
पुण्यों का अपमान हुआ है

अमृत सब साँपों ने पीया
उपलब्ध हमें विषपान हुआ है

सत्य नहीं उच्चार सके हम
झूठ बड़ा आसान हुआ है

चरित्र नहीं है पास किसी के
दरिद्र बड़ा इंसान हुआ है

ऊँचे महल बड़े दानी हैं
फुटपाथों का दान हुआ है

आज नहीं मुस्काने दिखतीं
ये जीवन श्मशान हुआ है

-महेश मूलचंदानी

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