आज यही अफसोस रहा है
आज यही अफसोस रहा है
कथनी का ही कोश रहा है
झूठ हुआ वाचाल बहुत है
सत्य सदा खामोश रहा है
नगर बन्द नारे हड़तालें
केवल इतना जोश रहा है
उन माथों पर मुकुट धरे हैं
पहले जिन पर दोष रहा है
जगा रहे वे ही जन जन को
गायब जिनका होश रहा है
-महेश मूलचंदानी
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