बोलने का जोश रखते हैं
बोलने का जोश रखते हैं
पर जुबाँ खामोश रखते हैं
अपने अपने अर्थों का हम
एक शब्दकोश रखते हैं
वे कसौटी लिए फिरते हैं
और बढ़कर दोष रखते हैं
दानिशमन्द कुछ नहीं करते
वे सिर्फ अफसोस रखते हैं
ग़रीब हैं इस क़दर नीचे
जैसे पैर पोश रखते हैं
-महेश मूलचंदानी