Thursday, December 21, 2006

बोलने का जोश रखते हैं

बोलने का जोश रखते हैं
पर जुबाँ खामोश रखते हैं

अपने अपने अर्थों का हम
एक शब्दकोश रखते हैं

वे कसौटी लिए फिरते हैं
और बढ़कर दोष रखते हैं

दानिशमन्द कुछ नहीं करते
वे सिर्फ अफसोस रखते हैं

ग़रीब हैं इस क़दर नीचे
जैसे पैर पोश रखते हैं


-महेश मूलचंदानी

1 Comments:

At 11:15 AM, Blogger Divine India said...

hello Mulchandani sahab,atyant vicharniye kathan kaha lekin jis prakar jal bin machli tarapti hai usi taraha Urdu bin Ghazal dam torti nazar aati hai.Ghazal ki sangidaghiyo me iss libas ki jaroorat hoti hai.but i think its very-2 good hindi poem n more realistic also...

 

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